उत्तम, सुन्दर एवं योग्य सन्तान प्राप्ति के योग
- Astro Mahesh Jyotishacharya Guru ji
- Oct 25, 2019
- 4 min read
संतान योग जातक की जन्मकुंडली में जैसा भी विद्यमान हो उसके अनुसार प्राप्त हो ही जाता है फ़िर भी कुछ प्रयासों से मनचाही संतान प्राप्त की जा सकती है. यानि प्रयत्न पूर्वक कर्म करने से बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है. विवाहोपरांत दंपति को संतान प्राप्ति की प्रबल उत्कंठा होती है. आज जब लडकियां भी पढ लिखकर काफ़ी उन्नति कर रही हैं तो भी अधिकांश दंपतियों की दबे छुपे मन में पुत्र संतान ही प्राप्त करने की इछ्छा रखते हैं. योग्य पुत्र प्राप्त करने के इच्छुक दंपति अगर निम्न नियमों का पालन करें तो अवश्य ही उत्तम पुत्र प्राप्त होगा. स्त्री को हमेशा पुरूष के बायें तरफ़ सोना चाहिये. कुछ देर बांयी करवट लेटने से दायां स्वर और दाहिनी करवट लेटने से बांया स्वर चालू हो जाता है. इस स्थिति में जब पुरूष का दांया स्वर चलने लगे और स्त्री का बांया स्वर चलने लगे तब संभोग करना चाहिये. इस स्थिति में अगर गर्भादान हो गया तो अवश्य ही पुत्र उत्पन्न होगा. स्वर की जांच के लिये नथुनों पर अंगुली रखकर ज्ञात किया जा सकता है. योग्य कन्या संतान की प्राप्ति के लिये स्त्री को हमेशा पुरूष के दाहिनी और सोना चाहिये. इस स्थिति मे स्त्री का दाहिना स्वर चलने लगेगा और स्त्री के बायीं तरफ़ लेटे पुरूष का बांया स्वर चलने लगेगा. इस स्थिति में अगर गर्भादान होता है तो निश्चित ही सुयोग्य और गुणवती कन्या संतान प्राप्त होगी. जिन लोगों को सुंदर, दिर्घायु और स्वस्थ संतान चाहिये उन्हें गडांत, ग्रहण, सूर्योदय एवम सूर्यास्त्काल, निधन नक्षत्र, रिक्ता तिथि, दिवाकाल, भद्रा, पर्वकाल, अमावस्या, श्राद्ध के दिन, गंड तिथि, गंड नक्षत्र तथा आंठवें चंद्रमा का त्याग करके शुभ मुहुर्त में संभोग करना चाहिये. मासिक धर्म शुरू होने के प्रथम चार दिवसों में संभोग से पुरूष रुग्णता को प्राप्त होता है. पांचवी रात्रि में संभोग से कन्या, छठी रात्रि में पुत्र, सातवी रात्रि में बंध्या पुत्री, आठवीं रात्रि के संभोग से ऐश्वर्यशाली पुत्र, नवी रात्रि में ऐश्वर्यशालिनी पुत्री, दसवीं रात्रि के संभोग से अति श्रेष्ठ पुत्र, ग्यारहवीं रात्रि के संभोग से सुंदर पर संदिग्ध आचरण वाली कन्या, बारहवीं रात्रि से श्रेष्ठ और गुणवान पुत्र, तेरहवी रात्रि में चिंतावर्धक कन्या एवम चौदहवीं रात्रि के संभोग से सदगुणी और बलवान पुत्र की प्राप्ति होती है. पंद्रहवीं रात्रि के संभोग से लक्ष्मी स्वरूपा पुत्री और सोलहवीं रात्रि के संभोग से गर्भाधान होने पर सर्वज्ञ पुत्र संतान की प्राप्ति होती है. इसके बाद की अक्सर संतान नही होती. अत: इच्छित संतान प्राप्ति के लिए उपरोक्त तथ्यों का ध्यान रखते हुये बताये गये स्वरों के अनुसार कर्म करना चाहिये. पुरातन काल में दंपति आज की तरह हर रात्रि को नही मिलते थे सिर्फ़ उनका सहवास सिर्फ़ संतान प्राप्ति के उद्देष्य के लिये होता था. शुभ दिन और शुभ मुहुर्त के संभोग से वो योग्य संतान प्राप्त कर लेते थे. वर्तमान काल में युवा पीढी की उदंडता, अनुशासनहीनता, लडाई झाग्डे की प्रवॄति वाले उग्रवादी होने के लिये वास्तव में उनके माता पिता ही जिम्मेदार हैं क्योंकि वे किसी भी दिन, किसी भी समय संभोग करके गर्भ धारण करके संतान पैदा कर लेते हैं. एक ऋषि और उनकी स्त्री इसके ज्वलंत उदाहरण हैं एक दिन महर्षि संध्या समय नदी तट पर संध्या हेतु जा रहे थे कि उसी समय उनकी पत्नि ने कामाभिभूत होकर महर्षि को सहवास के लिये निमंत्रण देकर उन्हें ऐसा करने के लिये बाध्य कर दिया. इस संध्या काल के गर्भाधान की वजह से ही उनकी स्त्री ने हिरणकश्यप जैसी राक्षस संतान पैदा की. उनकी द्वितीय पत्नि धार्मिक नियमों का पालन करते हुये केवल रात्रि के शुभ मुहुर्तों में ही संभोग रत होते थे अत: उनकी गर्भ से सारी देवता संताने ही पैदा हुई. गर्भाधान के समय केंद्र एवम त्रिकोण मे शुभ ग्रह हों, तीसरे छठे ग्यारहवें घरों में पाप ग्रह हों, लग्न पर मंगल गुरू इत्यादि शुभ कारक ग्रहों की दॄष्टि हो, विषम चंद्रमा नवमांश कुंडली में हो और मासिक धर्म से सम रात्रि हो, उस समय सात्विक विचार पूर्वक योग्य पुत्र की कामना से यदि रति की जाये तो निश्चित ही योग्य पुत्र की प्राप्ति होती है. इस समय में पुरूष का दायां एवम स्त्री का बांया स्वर ही चलना चाहिये, यह अत्यंत अनुभूत और अचूक उपाय है जो खाली नही जाता. इसमे ध्यान देने वाली बात यह है कि पुरुष का जब दाहिना स्वर चलता है तब उसका दाहिना अंडकोशः अधिक मात्रा में शुक्राणुओं का विसर्जन करता है जिससे कि अधिक मात्रा में पुल्लिग शुक्राणु निकलते हैं. अत: पुत्र ही उत्पन्न होता है। यदि पति पत्नि संतान प्राप्ति के इच्छुक ना हों और सहवास करना ही चाहें तो मासिक धर्म के अठारहवें दिन से पुन: मासिक धर्म आने तक के समय में सहवास कर सकते हैं, इस काल में गर्भादान की संभावना नही के बराबर होती है. तीन चार मास का गर्भ हो जाने के पश्चात दंपति को सहवास नही करना चाहिये. अगर इसके बाद भी संभोग रत होते हैं तो भावी संतान अपंग और रोगी पैदा होने का खतरा बना रहता है. इस काल के बाद माता को पवित्र और सुख शांति के साथ देव आराधन और वीरोचित साहित्य के पठन पाठन में मन लगाना चाहिये. इसका गर्भस्थ शिशु पर अत्यंत प्रभावकारी असर पदता है।
आचार्य महेश भारद्वाज शास्त्री
ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र रजि. पानीपत
+91-9813739222

Commenti