top of page
Search

भारतराष्ट्र’ की पहचान है विक्रम संवत्जानिए कैसा होगा "विरोधकृत" नव संवत्सर ?

  • Writer: Astro Mahesh Jyotishacharya Guru ji
    Astro Mahesh Jyotishacharya Guru ji
  • Mar 17, 2018
  • 4 min read

इस वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि रविवार,18 मार्च, 2018 से 'विरोधकृत' नामक नवसंवत्सर 2075 का शुभारंभ हो रहा है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार विक्रम संवत्सर जिस वार को शुरू होता है, पूरे वर्ष उसी वार का स्वामी राजा होता है। रविवार से प्रारम्भ हो रहे इस नवसंवत्सर के राजा भी सूर्य हैं और मंत्री शनि हैं, मेघेश शुक्र एवं धनेश चंद्रमा होंगे। ज्योतिषाचार्यों की मानें तो राजा और मंत्री के ग्रहों में परस्पर शत्रुता होने के कारण इस संवत्सर वर्ष में वर्षा में कमी की वजह से फ़सलों के उत्पादन में कमी, सूखा,आतंकी वारदातों में वृद्धि एवं सत्तापक्ष को मानसिक कष्ट मिलने की संभावनाएं बताई जा रही हैं। दूध एवं फ़लों के रस का उत्पादन बढ़ सकता है,अनाज मंहगा होगा किन्तु चांदी सस्ती होने का योग भी है। भारतीय काल गणना पद्धति के अनुसार प्रतिवर्ष चैत्र मास के शुक्लपक्ष की जिस प्रतिपदा तिथि से नव संवत्सर विक्रम संवत् का आरम्भ होता है उसी पुण्यतिथि तिथि से वासन्तिक नवरात्र भी प्रारम्भ हो जाते हैं। इस दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था इसलिए इस पावन तिथि को प्रतिवर्ष नवसंवत्सर पर्व के रूप में भी मनाया जाता है- "चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि। शुक्लपक्षे समग्रं तु तदा सूर्योदये सति।।"                                                  - हेमाद्रि संवत्सर-चक्र के अनुसार सूर्य इस ऋतु में अपने राशि-चक्र की प्रथम राशि मेष में प्रवेश करता है। भारतवर्ष में वसन्त ऋतु के अवसर पर नूतन वर्ष का आरम्भ मानना इसलिए भी हर्षोल्लास पूर्ण है क्योंकि इस ऋतु में चारों ओर हरियाली रहती है तथा नवीन पत्र-पुष्पों द्वारा प्रकृति का नव श्रृंगार किया जाता है। लोग इस दिन वन्दनवार, तोरण आदि से अपने घर-द्वार सजाते हैं तथा नवीन वस्त्राभूषण धारण करके ज्योतिषाचार्य द्वारा नूतन संवत्सर वर्ष का फल सुनते हैं। शास्त्र ग्रन्थों के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि के दिन प्रातःकाल स्नानादि द्वारा शुद्ध होकर हाथ में गन्ध,अक्षत, पुष्प और जल लेकर 'ॐ भू र्भुवः स्वः सम्वत्सर-अधिपति आवाहयामि पूजयामि च' इस मंत्र का जप करते हुए नव संवत्सर की पूजा करनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि नव संवत्सर के दिन नीम के कोमल पत्तों और ऋतुकाल के पुष्पों का चूर्ण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिश्री, इमली और अजवायन मिलाकर खाने से रक्त विकार नहीं होते तथा पूरे वर्ष आरोग्य की प्राप्ति होती है। पूजन के अनन्तर नव वर्ष के विघ्नों के नाश और उसके कल्याणकारी होने के लिए ब्रह्माजी से इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए- "भगवंस्त्वत्प्रसादेन वर्षं क्षेममिहास्तु मे। संवत्सरोपसर्गा मे विलयं यान्त्वशेषतः।।" भारतवर्ष में इस समय देशी तथा विदेशी मूल के अनेक संवतों का प्रचलन है किन्तु भारत के सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से सर्वाधिक लोकप्रिय राष्ट्रीय संवत् यदि कोई है तो वह विक्रम संवत् ही है। आज से लगभग 2075 वर्ष पूर्व यानी 57 ई.पू. में भारतवर्ष के प्रतापी राजा विक्रमादित्य ने देशवासियों को शकों के अत्याचारी शासन से मुक्त किया था। उसी विजय की स्मृति में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से विक्रम संवत् का भी आरम्भ हुआ था। प्राचीन काल में नया संवत् चलाने से पहले विजयी राजा को अपने राज्य में रहने वाले सभी लोगों को ऋण मुक्त करना आवश्यक होता था। राजा विक्रमादित्य ने भी इसी परम्परा का पालन करते हुए अपने राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों का राज्यकोष से कर्ज चुकाया और उसके बाद चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से मालवगण के नाम से नया संवत् चलाया। शिलालेखों में मालव संवत् के नाम से प्रसिद्ध यही संवत् बाद में विक्रम संवत् के नाम से लोकप्रिय हो गया।धौलपुर से मिलने वाला संवत् 898 का शिलालेख सबसे पहला शिलालेख है जिसमें विक्रम संवत् का उल्लेख मिलता है। इससे पहले के सभी शिलालेख मालव संवत् के नाम से जारी किए गए थे। दरअसल, भारतीय परम्परा में चक्रवर्ती राजा विक्रमादित्य शौर्य, पराक्रम, प्रजाहितैषी कार्यों के लिए प्रसिद्ध माने जाते हैं। उन्होंने 95 शक राजाओं को पराजित करके भारत को विदेशी राजाओं की दासता से मुक्त किया था। राजा विक्रमादित्य के पास एक ऐसी शक्तिशाली विशाल सेना थी जिससे विदेशी आक्रमणकारी खौफ खाते थे। ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला,संस्कृति को विक्रमादित्य ने विशेष प्रोत्साहन दिया था। 'ज्योतिर्विदाभरण' नामक ग्रन्थ के अनुसार धन्वन्तरि जैसे महान् वैद्य, वराहमिहिर जैसे महान् ज्योतिषी और कालिदास जैसे महान् साहित्यकार विक्रमादित्य की राज्यसभा के नवरत्नों में शोभा पाते थे। प्रजावत्सल नीतियों के फलस्वरूप ही विक्रमादित्य ने अपने राज्यकोष से धन देकर दीन दुःखियों को साहुकारों के कर्ज से मुक्त किया था। एक चक्रवर्ती सम्राट् होने के बाद भी विक्रमादित्य राजसी ऐश्वर्य भोग को त्यागकर भूमि पर शयन करते थे। वे अपने सुख के लिए राज्यकोष से धन नहीं लेते थे। अपने पीने के लिए जल भी वे स्वयं क्षिप्रा नदी से लाया करते थे। विक्रमादित्य के इन्हीं राष्ट्ररक्षा सम्बन्धी कृत्यों और प्रजाहितैषी नीतियों के कारण उनके द्वारा चलाए गए संवत् को राष्ट्रीय आस्थाभाव से देखा जाने लगा। पिछले दो हजार वर्षों में अनेक देशी और विदेशी राजाओं ने अपनी साम्राज्यवादी आकांक्षाओं की तुष्टि करने तथा इस देश को राजनैतिक दृष्टि से पराधीन बनाने के प्रयोजन से अनेक संवतों को चलाया किन्तु ‘भारतराष्ट्र’ की सांस्कृतिक पहचान केवल मात्र विक्रमी संवत् के साथ ही जुड़ी रही। अंग्रेजी शिक्षा-दीक्षा और पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के कारण आज भले ही सर्वत्र ईस्वी संवत् का बोलबाला हो और भारतीय तिथि-मासों की काल गणना से लोग अनभिज्ञ होते जा रहे हों परन्तु एक ठोस सच्चाई यह भी है कि देश के सांस्कृतिक पर्व-उत्सव तथा राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, गुरुनानक आदि महापुरुषों की जयंतियां आज भी भारतीय काल गणना के हिसाब से मनाई जाती हैं, ईस्वी संवत् के अनुसार नहीं। विवाह-मुण्डन का शुभ मुहूर्त हो या श्राद्ध-तर्पण की पुण्य तिथि सबका निर्धारण भारतीय पंचांग पद्धति के अनुसार ही किया जाता है, ईस्वी सन् की तिथियों के अनुसार नहीं। विक्रम संवत् को भारत का राष्ट्रीय संवत् इसलिए भी माना जाता है क्योंकि केवल यही एक ऐसा धर्मनिरपेक्ष संवत् है जो किसी धर्म या सम्प्रदाय प्रवर्तक की यादगार से नहीं जुड़ा है बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप के षड् ऋतुचक्र और सूर्य के वार्षिक संवत्सर चक्र की ज्योतिष वैज्ञानिक अवधारणाओं से अनुप्राणित है।भारतीय कालगणना के अनुसार वसन्त ऋतु और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि अति प्राचीनकाल से सृष्टि प्रक्रिया की भी पुण्य तिथि रही है। ब्रह्मा के द्वारा सृष्टि निर्माण की अवधारणा हो या मत्स्यावतार और सत्ययुग के प्रारम्भ होने की तिथि, सृष्टि के आदिकाल से चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के साथ उनका कालगणनापरक सम्बन्ध रहता आया है। वसन्तु ऋतु में आने वाले वासन्तिक नवरात्र का प्रारम्भ भी सदा उसी पुण्यतिथि से होता है। विक्रमादित्य ने भारत राष्ट्र की इन तमाम सांस्कृतिक परम्पराओं को ध्यान में रखते हुए ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से ही अपने नवसंवत्सर संवत् को चलाने की परम्परा शुरु की थी। समस्त देशवासियों को नवसंवत्सर विक्रम संवत् 2075 मंगलमय हो। आचार्य महेश भााारद्वा शास्त्री

9813739222

 
 
 

Recent Posts

See All

Comentarios


Address

jyotish anusandhan kendra reg.

Contact

Follow

  • Facebook

9813739222

©2017 BY MAA DUKH HARNI. PROUDLY CREATED WITH WIX.COM

bottom of page