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नरक चतुर्दशी, काली चौदस, रूप चतुर्दशी, छोटी दीपावली आदि का महत्व एवं कथा

  • Writer: Astro Mahesh Jyotishacharya Guru ji
    Astro Mahesh Jyotishacharya Guru ji
  • Oct 15, 2017
  • 3 min read

भारतीय त्यौहारों में नरक चतुर्दशी भारतीय त्यौहारों में नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली और रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है। नरक चतुर्दशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में मनाई जाती है। हिंदू ग्रंथों के अनुसार इस दिन नरकासुर को कृष्ण, सत्यभामा और काली माता ने मार डाला था। भारतीय त्यौहारों में नरक चतुर्दशी नरकासुर प्रयाग ज्योतिषपुर का राजा था। जिसने राजाओं, ब्रहाम्णों और राजकुमारियों को अकारण बंदी बनाया था। उसने कई अधर्म किए थे। उसके कुकृत्यों का परिणाम उसकी मौत से हुआ। नरकासुर का वध कैसे हुआ हिंदू साहित्य में बताया गया है कि नरकासुर एक अधर्मी राजा था। उसके कुकृत्यों से देवलोक में सभी देवता परेशान थे। सभी देवताओं ने कृष्ण से अपनी मदद करने की गुहार लगाई और भगवान कृष्ण ने उनकी मदद करने का आश्वासन दिया। नरकासुर को वरदान था कि उसे वही व्यक्ति मार सकता है जो अपनी पत्नी के साथ हो। इसलिए श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को अपना सारथी बनाया और नरकासुर का वध किया। जब नरकासुर का वध कृष्ण कर देते हैं। तब उसका शव जमीन में चला जाता है। जमीन में से भू माता प्रकट होती हैं। भू माता कृष्ण को नरकासुर को अपना पुत्र बताकर पूरी कहानी बताती हैं। वे बताती हैं कि पूर्व काल में वराह अवतार के समय कृष्ण ने नरकासुर को भू देवी को दिया था। जिसका वध श्री कृष्ण के हाथों ही लिखा था। इस दिन को काली चौदस के रूप में भी मनाया जाता है। काली अर्थात काला अर्थात बुराई और चौदस यानि चौदह। अर्थात बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश भी नरक चतुर्दशी देती है। इस दिन महाकाली की पूजा की जाती है। इस दिन आलसीपन और बुराई को हटाकर जिंदगी में सच्चाई की रोशनी की मांग की जाती है। नरक चतुर्दशी छोटी दिवाली भी है नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस रात घर के बाहर दिए जलाकर रखने से यमराज प्रसन्न होते हैं। और अकाल मृत्यु का भय टलता है। 

एक कथा के अनुसार आज ही के दिन श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। और 16,000 कन्याओं को उसके बंदीग्रह से मुक्त किया था। इसलिए इस दिन दियों को जलाया जाता है। क्यों मनाई जाती है। नरक चतुर्दशी मनाए जाने के पीछ कई कथाएं हैं जिनमें से एक यह भी है। रंती देव नामक एक धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था। लेकिन जब मौत का समय आया तो उनके सामने यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को देखकर राजा बोले मैंने तो कभी कोई पाप या अधर्म नहीं किया है। फिर आप लोग मुझे ले जाने क्यों आए हैं।

क्यों मनाई जाती है नरक चतुर्दशी तब यमदूत ने कहा कि ‘हे राजन एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था। यह उसी पाप कर्म का फल है।‘ फिर राजा ने कहा कि मैं आपसे विनती करता हूं कि मुझे एक साल का समय दे दें। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की महौलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उनसे अपने पाप की मुक्ति का उपाय पूछा। फिर ऋषि बोले आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें। और ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस तरह राजा पाप मुक्त हो गए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान मिला। उस दिन से पाप और नरक से मुक्ति के लिए नरक चतुर्दशी का व्रत प्रचलित है।

इस दिन क्या करें इस दिन तेल लगाकर पानी में अपामार्ग के पत्ते डालकर उसमें स्नान करने का बहुत महत्व है। नहाने के बाद विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में जाएं और भगवान के दर्शन करें। इससे पाप से मुक्ति मिलती है। और रूप सौंदर्य की प्राप्ति होती है। 

 
 
 

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