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अहोई अष्टमी: इस विधि से करें व्रत और पूजन

  • Writer: Astro Mahesh Jyotishacharya Guru ji
    Astro Mahesh Jyotishacharya Guru ji
  • Oct 12, 2017
  • 3 min read

गुरुवार दिनांक 12.10.17 को कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर अहोई अष्टमी पर्व मनाया जाएगा। शास्त्रों के अनुसार अहोई अष्टमी व्रत उदय कालिक एवं प्रदोष व्यापिनी अष्टमी को करने का विधान है। अहोई अष्टमी पर्व और व्रत का संबंध महादेवी पार्वती के अहोई स्वरूप से है। मान्यतानुसार इसी दिन से दीपावली का प्रारंभ माना जाता है। अहोई अष्टमी के उपवास को करने वाली माताएं इस दिन प्रात:काल में उठकर, एक कोरे करवे अर्थात मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर माता अहोई का पूजन करती हैं। इस दिन महिलाएं अपनी संतान के लिए उपवास करती हैं और बिना अन्न-जल ग्रहण किए निर्जल व्रत रखती हैं। सूर्यास्त के बाद संध्या के समय कुछ लोग तारों को अर्घ्य देकर व कुछ लोग चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण करते हैं।  मूलतः अहोई अष्टमी का व्रत संतान सुख व संतान की कामना के लिए किया जाता है। इस दिन निसंतान दंपत्ति भी संतान की कामना करते हुए अहोई अष्टमी के व्रत का विधि विधान से पालन करते हैं। अहोई अष्टमी के उपाय, व्रत व पूजन देवी पार्वती के अहोई  स्वरूप के निमित अपनी संतान की सुरक्षा, लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि और संतान की प्राप्ति के लिए किया जाता है। मान्यतानुसार अहोई पूजन के लिए शाम के समय घर की उत्तर दिशा की दीवार पर गेरू से आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। उसी के पास सेह तथा उसके बच्चों की आकृतियां बनाई जाती हैं। कई समृद्ध परिवार इस दिन चांदी की अहोई बनवकार पूजन भी करते हैं। चांदी की अहोई में दो मोती डालकर विशेष पूजा भी की जाती है। इसके लिए एक धागे में अहोई व दोनों चांदी के दानें डाले जाते हैंं। हर साल इसमें दाने जोड़े जाने की मान्यता प्रचलित है। घर की उत्तर दिशा अथवा ब्रह्म केंद्र में ज़मीन पर गाय के गोबर और चिकनी मिट्टी से लीपकर कलश स्थापना की जाती है। पूजन के समय कलश स्थापना कर प्रथम पूज्य गणेश की पूजा की जाती है उसके बाद अहोई माता की पूजा करके उनका षोडशोपचार पूजन किया जाता है तथा उन्हें दूध, शक्कर और चावल का भोग लगाया जाता है। इसके बाद एक लकड़ी के पाटे पर जल से भरा लोटा स्थापित करके अहोई की कथा सुनी और कही जाती है।  सूर्यास्त के पश्चात तारों के निकलने पर महादेवी व उनके सात पुत्रों का विधान से पूजन किया जाता है। पूजा के बाद बुजुर्गों के पैर छूकर आर्शीवाद लेते हैं। इसके बाद करवा से तारों पर जल का अर्घ्य देकर उनका पूजन किया जाता है।  ज्योतिषशास्त्र के पंचांग खंड अनुसार अहोई अष्टमी के व्रत व पूजन का मुहूर्त गुरुवार दिनांक 12.10.17 को शाम 17:50 से शाम 19:06 तक प्रदोष काल में किया जाना चाहिए। इस दिन सूर्यास्त का समय रहेगा शाम 17:50 पर। तारों के निकालने पर पूजन मुहूर्त रहेगा शाम 18:18 से लेकर शाम 19:06 तक। रात में चंद्रोदय का समय है 23:48 पर। अतः चंद्रोदय पूजन मुहूर्त रहेगा रात 23:48 से अगले दिन प्रातः 04:59 तक। अष्टमी तिथि अगले दिन प्रातः 04:59 तक रहेगी। कौलव नामक करण शाम 17:55 से प्रातः 04:59 तक रहेगा।  इस दिन गुरूवार और पुनर्वसु नक्षत्र होने के कारण रवियोग, सिद्धि योग और अति शुभ सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। तारों के निकलने पर महादेवी का षोडशोपचार पूजन करें। गौघृत में हल्दी मिलाकर दीपक करें, चंदन की धूप करें। देवी पर रोली, हल्दी व केसर चढ़ाएं। चावल की खीर का भोग लगाएं। पूजन के बाद भोग किसी गरीब कन्या को दान दे दें। जीवन से विपदाएं दूर करने के लिए महादेवी पर पीले कनेर के फूल चढ़ाएं। अपने संतान की तरक्की के लिए देवी अहोई पर हलवा पूड़ी चढ़ाकर गरीब बच्चों में बाटें दें। संतानहीनता के निदान के लिए कुष्मांड पेट से 5 बार वारकर मां पार्वती पर चढ़ाएं। विशेष पूजन मंत्र: ॐ उमादेव्यै नमः॥ 

 
 
 

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