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आज रात्री शरद पूर्णिमा पर करे ऐसा और देखे होगा चमत्कार

  • Writer: Astro Mahesh Jyotishacharya Guru ji
    Astro Mahesh Jyotishacharya Guru ji
  • Oct 5, 2017
  • 4 min read

क्या हैं शरद पूर्णिमा की रात का महत्व- रोगियों के लिए वरदान हैं शरद पूर्णिमा की रात एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है। अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है। शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। हल्दी का उपयोग निषिद्ध है। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है। वर्ष में एक बार शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है। इस रात्रि में दिव्य औषधि को खीर में मिलाकर उसे चांदनी रात में रखकर प्रात: 4 बजे सेवन किया जाता है। रोगी को रात्रि जागरण करना पड़ता है और औ‍षधि सेवन के पश्चात 2-3 किमी पैदल चलना लाभदायक रहता है। 

इस बार शरद पूर्णिमा 5 अक्टूबर यानी गुरुवार हो है। आज शरद पूर्णिमा है। 17 साल में पहली बार होगा जब शरद पूर्णिमा 2 अद्भुत संयोग में मनेगी। जी हां इस बार शरद पूर्णिमा में सवार्थ सिद्ध योग और यायीजयद योग सोलह कला से पूर्ण होकर अमृत बरसाएगा। अश्विन माह के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा 17 कलाओं से परिपूर्ण होता है। जिसमें रात के समय खीर को खुले आसमान में रखना चाहिए और इसे सुबह प्रसाद के रुप में गर्ङण करना शुभ माना जाता है। सवार्थसिद्ध योग रात 8 बजकर 50 मिनट से शुरु होकर दूसरे दिन की रात 12 बजे तक रहेगा। वहीं यायीजयद योग सुबह 5 बजकर 55 मिनट से लेकर रात 12 बजकर 10 मिनट तक रहेगा आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि इस दिन चंद्रमा प्रथ्वी के सबसे निकट होता है। अश्विन माह में पड़ने वाली पू्र्णिमा का विशेष महत्व होता है। शरद पूर्णिमा वाली रात को जागरण करने और रात में चांद की रोशनी में खीर रखने का विशेष महत्व होता है। इस रात को चंद्रमा अपनी पूरी सोलह कलाओं के प्रदर्शन करते हुए दिखाई देते हैं। शरद पूर्णिमा को कोजागरी या कोजागर पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। चौमासे यानि भगवान विष्णु जिसमें सो रहे होते हैं वह समय अपने अंतिम चरण में होता है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा का चांद अपनी सभी 16 कलाओं से संपूर्ण होकर अपनी किरणों से रात भर अमृत की वर्षा करता है। ऐसे में इस रात को आसमान में खीर रखने से खीर अमृत समान होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा इसलिए भी महत्व रखती है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था। इसलिए इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। शरद पूर्णिमा को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। शरद पूर्णिमा की प्रमुख कथाएं और मान्यताएं कुछ इस प्रकार हैं। चंद्र देव अपनी 27 पत्नियों- रोहिणी, कृतिका आदि नक्षत्र के साथ अपनी पूरी कलाओं से पूर्ण होकर इस रात सभी लोकों पर शीतलता की वर्षा करते हैं। इस दिन इंद्र और महालक्ष्मी का पूजन करते हुए कोजागर व्रत करने की परंपरा है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। इस रात्रि को अद्भुत कृष्णलीला होती है। भगवान गोपियों की कईजन्मों की तपस्या को पूर्णकरते हैं। गोपियां भगवान की लीला का अंश बनकर धन्य होती हैं। भगवान धीरे-धीरे नाच रहे हैं। गोपियां गा रही हैं। कृष्ण को बना कर लिखे गीतों में कृष्ण के सौत के प्रति प्रेम पर उन्हें नटनागर कहा जा रहा है। नटनागर सबकुछ जान रहे हैं और मुस्करा रहे हैं। बांसुरी के संगीत में अद्भुत मोहक धुन है। गोपियां कृष्ण भक्ति में तल्लीन हैं। योगेश्वर श्रीकृष्ण सभी के साथ अलग-अलग, लेकिन एक ही रूप में हैं। रास पूर्णिमा तभी तो कहते हैं इसे। भगवान शिव तो इसी रासलीला के मोह में भगवान श्रीकृष्ण का यह वचन भी भूल गए कि जो इस रास में शामिल होगा, उसे स्त्री का ही रूप स्वीकारना होगा। पर रासलीला का उनका मोह समाप्त नहीं हुआ, वरन् कृष्ण को देखने की प्रबल इच्छा में बदल गया। वृन्दावन में गोपेश्वर महादेव के मंदिर में इसीलिए तो शिवजी दिन में शिव रूप में रहते हैं और फिर साज-श्रृंगार के साथ गोपी का रूप धारण करते हैं। यूं इसे कौमुदी महोत्सव भी कहा जाता है। वृन्दावन में इस दिन भव्य उत्सव मनता है। शरद पूर्णिमा के दिन मानों चंद्रमा की शीतलता मन में भी घर कर जाती है। इस दिन में गजब की ईश्वरीय शांति है। संकटों से घिरा मन प्रसन्नता से भरा-पूरा होता है। इस दिन सात्विक रहें। पूर्ण ब्रह्मचर्य भी जरूरी है। 

 
 
 

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