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पूजा मे इन बातो का विशेष ध्यान रखे। ऐसा ना करने पर हो सकता है अनर्थ ।

  • Writer: Astro Mahesh Jyotishacharya Guru ji
    Astro Mahesh Jyotishacharya Guru ji
  • Aug 23, 2017
  • 4 min read

 अति महत्वपूर्ण बातें 1. घर में सेवा पूजा करने वाले जन भगवान के एक से अधिक स्वरूप की सेवा पूजा कर सकते हैं  2. घर में दो शिवलिंग की पूजा ना करें तथा पूजा स्थान पर तीन गणेश जी नहीं रखें। 3. शालिग्राम जी की बटिया जितनी छोटी हो उतनी ज्यादा फलदायक है। 4. कुशा पवित्री के अभाव में स्वर्ण की अंगूठी धारण करके भी देव कार्य सम्पन्न किया जा सकता है। 5. मंगल कार्यो में कुमकुम का तिलक प्रशस्त माना जाता हैं। 6. पूजा में टूटे हुए अक्षत के टूकड़े नहीं चढ़ाना चाहिए। 7. पानी, दूध, दही, घी आदि में अंगुली नही डालना चाहिए। इन्हें लोटा, चम्मच आदि से लेना चाहिए क्योंकि नख स्पर्श से वस्तु अपवित्र हो जाती है अतः यह वस्तुएँ देव पूजा के योग्य नहीं रहती हैं। 8. तांबे के बरतन में दूध, दही या पंचामृत आदि नहीं डालना चाहिए क्योंकि वह मदिरा समान हो जाते हैं। 9. आचमन तीन बार करने का विधान हैं। इससे त्रिदेव ब्रह्मा-विष्णु-महेश प्रसन्न होते हैं। 10. दाहिने कान का स्पर्श करने पर भी आचमन के तुल्य माना जाता है। 11. कुशा के अग्रभाग से दवताओं पर जल नहीं छिड़के। 12. देवताओं को अंगूठे से नहीं मले। 13. चकले पर से चंदन कभी नहीं लगावें। उसे छोटी कटोरी या बांयी हथेली पर रखकर लगावें। 15. पुष्पों को बाल्टी, लोटा, जल में डालकर फिर निकालकर नहीं चढ़ाना चाहिए। 16. श्री भगवान के चरणों की चार बार, नाभि की दो बार, मुख की एक बार या तीन बार आरती उतारकर समस्त अंगों की सात बार आरती उतारें। 17. श्री भगवान की आरती समयानुसार जो घंटा, नगारा, झांझर, थाली, घड़ावल, शंख इत्यादि बजते हैं उनकी ध्वनि से आसपास के वायुमण्डल के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। नाद ब्रह्मा होता हैं। नाद के समय एक स्वर से जो प्रतिध्वनि होती हैं उसमे असीम शक्ति होती हैं। 18. लोहे के पात्र से श्री भगवान को नैवेद्य अपर्ण नहीं करें। 19. हवन में अग्नि प्रज्वलित होने पर ही आहुति दें। 20. समिधा अंगुठे से अधिक मोटी नहीं होनी चाहिए तथा दस अंगुल लम्बी होनी चाहिए। 21. छाल रहित या कीड़े लगी हुई समिधा यज्ञ-कार्य में वर्जित हैं। 22. पंखे आदि से कभी हवन की अग्नि प्रज्वलित नहीं करें। 23. मेरूहीन माला या मेरू का लंघन करके माला नहीं जपनी चाहिए। 24. माला, रूद्राक्ष, तुलसी एवं चंदन की उत्तम मानी गई हैं। 25. माला को अनामिका (तीसरी अंगुली) पर रखकर मध्यमा (दूसरी अंगुली) से चलाना चाहिए। 26.जप करते समय सिर पर हाथ या वस्त्र नहीं रखें। 27. तिलक कराते समय सिर पर हाथ या वस्त्र रखना चाहिए। 28. माला का पूजन करके ही जप करना चाहिए। 29. ब्राह्मण को या द्विजाती को स्नान करके तिलक अवश्य लगाना चाहिए। 30. जप करते हुए जल में स्थित व्यक्ति, दौड़ते हुए, शमशान से लौटते हुए व्यक्ति को नमस्कार करना वर्जित हैं। 31. बिना नमस्कार किए आशीर्वाद देना वर्जित हैं। 32. एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए। 33. सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए। 34. बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करें। 35. जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। इसे उपांशु जप कहते हैं। इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं। 36. जप करते समय दाहिने हाथ को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए। 37. जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए। 38. संक्रान्ति, द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, रविवार और सन्ध्या के समय तुलसी तोड़ना निषिद्ध हैं। 39. दीपक से दीपक को नही जलाना चाहिए। 40. यज्ञ, श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं। 41. शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करना श्रेष्ठ है, किन्तु रविवार को परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। 42. कूमड़ा-मतीरा-नारियल आदि को स्त्रियां नहीं तोड़े या चाकू आदि से नहीं काटें। यह उत्तम नही माना गया हैं। 43. भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए। 44. देव प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें। 45. किसी को भी कोई वस्तु या दान-दक्षिणा दाहिने हाथ से देना चाहिए। 46. एकादशी, अमावस्या, कृृष्ण चतुर्दशी, पूर्णिमा व्रत तथा श्राद्ध के दिन क्षौर-कर्म (दाढ़ी) नहीं बनाना चाहिए । 47. बिना यज्ञोपवित या शिखा बंधन के जो भी कार्य, कर्म किया जाता है, वह निष्फल हो जाता हैं। 48. यदि शिखा नहीं हो तो स्थान को स्पर्श कर लेना चाहिए। 49. शिवजी की जलहारी उत्तराभिमुख रखें । 50. शंकर जी को बिल्वपत्र, विष्णु जी को तुलसी, गणेश जी को दूर्वा, लक्ष्मी जी को कमल प्रिय हैं। 51. शंकर जी को शिवरात्रि के सिवाय कुंुकुम नहीं चढ़ती। 52. शिवजी को कुंद, विष्णु जी को धतूरा, देवी जी को आक तथा मदार और सूर्य भगवानको तगर के फूल नहीं चढ़ावे। 53 .अक्षत देवताओं को तीन बार तथा पितरों को एक बार धोकर चढ़ावंे। 54. नये बिल्व पत्र नहीं मिले तो चढ़ाये हुए बिल्व पत्र धोकर फिर चढ़ाए जा सकते हैं। 55. विष्णु भगवान को चांवल, गणेश जी को तुलसी, दुर्गा जी और सूर्य नारायण को बिल्व पत्र नहीं चढ़ावें। 56. पत्र-पुष्प-फल का मुख नीचे करके नहीं चढ़ावें, जैसे उत्पन्न होते हों वैसे ही चढ़ावें। 57. किंतु बिल्वपत्र उलटा करके डंडी तोड़कर शंकर पर चढ़ावें। 58. पान की डंडी का अग्रभाग तोड़कर चढ़ावें। 59. सड़ा हुआ पान या पुष्प नहीं चढ़ावे। 60. गणेश को तुलसी भाद्र शुक्ल चतुर्थी को चढ़ती हैं। 61. पांच रात्रि तक कमल का फूल बासी नहीं होता है। 62. दस रात्रि तक तुलसी पत्र बासी नहीं होते हैं। 63. सभी धार्मिक कार्यो में पत्नी को दाहिने भाग में बिठाकर धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न करनी चाहिए। 64. पूजन करनेवाला ललाट पर तिलक लगाकर ही पूजा करें। 65. पूर्वाभिमुख बैठकर अपने बांयी ओर घंटा, धूप तथा दाहिनी ओर शंख, जलपात्र एवं पूजन सामग्री रखें। 66. घी का दीपक अपने बांयी ओर तथा देवता को दाहिने ओर रखें एवं चांवल पर दीपक रखकर प्रज्वलित करें।    आप सभी के श्री चरणों में प्रार्थना है अगर हो सके तो और लोगों को भी आप इन महत्वपूर्ण बातों से अवगत करा सकते हैं । किसी तरह की शंका हो तो सम्पर्क करे।  

आचार्य महेश भारद्वाज शास्त्री 

मो .9813739222

 
 
 

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